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    उत्तराखंड का लोकप्रिय पारंपरिक त्योहार बिरुड पंचमी व सातों -आठो, जाने इसकी मान्यता व विधि विधान

    उत्तराखंड के कुमाऊं में बिरुड पंचमी सातों -आठो पारंपरिक लोकप्रिय त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। भादो के एक गते से ठीक पंचमी के दिन पांच प्रकार के अनाज मटर,कल्ययू, चना,उरद गेहूं मक्का आदि के बीजो को साफ करके नौले या धारे में भिगाकर तांबे या पितल के बर्तन में बहार से साफ मिट्टी से पोतकर गाय के गोबर में दूब लाकर चन्दन अक्षत पिठया से पांच की आकृतियां बनाकर अपने घर के मंदिर के पास रख दिया जाता है।

    सातों का पर्व 2024 वर्ष में 25 अगस्त और आठों पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा।

    सप्तमी के दिन महिलाएं वर्त धारण करके खेतो में जाकर मक्का,तिल,या पाति की टहनियों से मां गौरा देवी व महेश की मुर्तियां बनाती है उन मुर्तिया में अच्छे नये कपड़े पहना कर गौरा देवी व महेश का श्रृंगार करती है।शाम को महिलाओं के द्वारा गौरा देवी व महेश की पूजा अर्चना की जाती है। पांचों अनाजों के भिगाये गये बिरुड चढ़ाया जाता है। आठों के दिन सुबह इन बिरुड को छौक लगाकर पकाया जाता है बड़े बुजुर्गो के द्वारा इस बिरुड को प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।

    लोकप्रिय पारंपरिक त्योहार बिरुड पंचमी व सातों

    सातों -आठो पारंपरिक लोकप्रिय त्यौहार में महिलाओं के द्वारा सातों के दिन व आठों के दिन वर्त रखा जाता जिसे डोर ,दुबड का वर्त कहते हैं। प्राचीन काल में ठीक घियू त्यार के दिन से मात्र शक्ति के द्वारा बिरुड पंचमी सातों -आठो के उपलक्ष्य में झोडा चांचरी, लोकगीत गाने की परंपरा थी जो अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही है।अब पंचमी के दिन से बिरुड भिगाने के बाद अपने अपने गांव में रात्रि के समय मात्र शक्ति के द्वारा झोड़ा चांचरी , लोकगीत भजन कीर्तन होते हैं। सप्तमी व अष्टमी को गौरा देवी व महेश को खूब नचाया जाता है महिलाओं व पुरुषों के लिए गांव गांव में झुंड बनाकर झोडा चांचरी लोकगीत भजन कीर्तन गाया जाता है। इसके पीछे कहावत है गौरा देवी रुठ कर भादो के महिने अपने मायके आती है तब गौरा देवी उसके मायके वाले बोलते ‘गौरा भादो के महिने क्यों आई क्या खाती अभी कुछ अनाज हुआ ही नहीं असोज(अश्विन) में आती है।

    उस समय का गाना भी बना हुआ गौरा देवी के लिए ‘किले ऐचछै गवरा भूखा भौदा हैगिल मैहिण ऊनि सुख दिन औसजा’, फिर गौरा देवी को लेने महेश आते हैं तब अष्टमी को गवरा देवी के साथ-साथ महेश की पूजा होती है। उसके बाद गवरा देवी को ससुराल को विदा किया जाता तब दिन में गौरा देवी व महेश को खूब नचाया जाता है।

    ससुराल को विदा करते,समय अपने अपने तरीके से लोकगीत झोडा चांचरी गाते हुए अपने ईष्ट देवी देवताओं के मंदिर ले जाया जाता है कहींपर आठों के दिन विसर्जन हो जाता कही पर दो दिन या तीन में तीन में विसर्जन होता इसका मुख्य कारण यह है जहां एक दिवसीय मेला होता है वहां पर आठों के दिन विसर्जन करते जहां पर दो दिवसीय मेला होता है वहां पर तीसरे दिन विसर्जन होता है।

    कुमाऊं मंडल में सातों -आठो के पारंपरिक लोकप्रिय त्यौहार के दिन महिलाएं पिछौड व पूरे श्रंगार के साथ व परिवार के सभी लोग उस दिन नया कपड़ा पहनकर सातों -आठो पारंपरिक लोकप्रिय त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। सातों -आठो के दिन परिवार में नया कपड़ा व महिलाओं को पिछौड व श्रंगार के साथ सातों -आठो पारंपरिक लोकप्रिय त्यौहार के लिए प्राचीन काल से प्रचलन है। कुमाऊं में सातों -आठो हर जगह मनाया जाता लेकिन पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा में सबसे ज्यादा मनाने की प्रथा है।

    प्राचीन काल की कहावत

    सातों -आठो गौरा देवी को मनाने के लिए प्राचीन काल की कहावत है प्राचीन काल की पौराणिक कथाओं के अनुसार एक ब्रह्ममण था जिसका नाम था बिड भाट इनके सात पुत्र सात बहुएं थी जो निरस्तान थी।इस कारण सात बहुएं निस्तान होने से बहुत दुखी था।एक बार व भाद्रपक्ष सप्तमी को अपने जजमानों के वहां से आ रहा था रास्ते में नदी पड़ती थी नदी के बहते हुए पानी में दाल के छिलकों में उसकी नजर पड़ी उसने ऊपर से आने वाले पानी को देखा तो तब उसकी नज़र एक महिला पर पड़ी नदी किनारे कुछ धो रही थी वह स्त्री के पास गया व कोई साधारण स्त्री नहीं बल्कि स्वयं पार्वती थी ,बीणभाट पंडित उस स्त्री से पूछा बहिन जी क्या धो रही है जो स्त्री स्वयं पार्वती के रूप में दाल के छिलकों को धो रही थी उसने पडित बिण भाट को बताया अगले दिन बिरुणी अष्टमी पूजा है बिरुड धो रही हूं। पंडित ने देवी से पूछा की इसकी विधि विधान तथा इसके बारे में फल मिलने की जानकारी दे सकती है।

    पार्वती जी ने इस वर्त का महत्व पडित बिण भाट जी को बताया भाद्र पक्ष को पंचमी के शुक्ल पक्ष को महिलाऐं वर्त रखकर पाच या सात अनाजों का बिरुड भिगाते है।उमा महेश्वर का ध्यान लगाकर तांबे या पितल के वर्तन में ये बिरुड बिधि बिधान से अपने घर के मंदिर या साफ जगह पर रखें जाते हैं।दो दिन के बाद सप्तमी को इनको धोकर साफ किया जाता है। अष्टमी के दिन वर्त धारण महिला ये बिरुड गौरा देवी व महेश्वर को चढ़ाया जाता है।पडित भाट ने पार्वती जी के द्वारा बताए गये बिधि बिधान घर आकर अपनी बहू को बोला छै बहुओं ने पार्वती के बताए गए बिधि बिधान व पांच प्रकार अनाज व बिरुड भिगाकर सब किया लेकिन एक बहू ने बिरुण भिगाते समय दाना मुंह में डाल दिया उसक वर्त भंग हो गया ऐसे और बहू लोगों का भी किसी कारण वर्त भंग हो गया सातवीं बहू सीधी सादी थी व जंगल गाय भैंस चराने गई थी बिणभाट ने उस बहू को जंगल से बुलाकर पार्वती जी के द्वारा बताए गए विधि विधान से बिरुड भिगाने के लिए बोला उसने उसी तरह से बिरुड भिगाकर गौरा देवी व महेश्वर की उपासना की और वर्त करके पूजा अर्चना की इस सातवीं बहू को दसवें महीने में पुत्र की प्राप्ति हुई बिणभाट अति प्रसन्न हुए। तभी से गौरा देवी सातों -आठो पौराणिक त्यौहार को महिलाओं के द्वारा बिरुड भिगाने की प्रथा वर्त रखने प्रथा है।हर मात्र शक्ति की आस्था संतान के लिए होती है।

    -----------प्रताप सिंह नेगी 
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