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    उत्तराखंड की पारंपरिक लोकगायिका सीमा गुसाई, क्यों सांस्कृतिक मंचों से अब भी है दूर

    Byswati tewari

    Aug 23, 2023

    सोशल मीडिया के इस प्रचार प्रसार वाले दौर में कई पुराने लोक संगीत, लोकगीत, लोक कलाकार कही छुप से गए हैं। गानों के ट्रेडिंग वाले दौर में लोकगीतों को अपनी जगह बनाना मुश्किल हो रहा है। वही लोग इसे भूलते भी जा रहे हैं। यह लोकगीत लोक परंपरा बस कुछ मंचों तक ही सीमित रह गई है।

    ऐसी ही रुद्रप्रयाग अगस्तमुनि विकास खंड छिनका ग्राम पंचायत गांव घौलतीर की 52 साल की सीमा गुसाई लोकगायिका के लोकगीत व लोककथा,व लोकनृत्य उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल के लिए धरोहर के रूप में है।

    https://youtube.com/@user-pf1pz8wx1v

    सीमा गुसाई एक गरीब परिवार की साधारण महिला है अपने घर परिवार के कामकाज के साथ-साथ बचपन से ही उत्तराखंड के देवी देवताओं के जागर,व रामाबौराणी लोक कथा,राम लीला,व कुमाऊंनी गढ़वाली लोकगीत व लोकनृत्य में निपुण हैं। सीमा गुसाई लोकगायिका ने दस साल पहले छोटे छोटे कार्यक्रम व महिला रामलीला अभिनय करते करते आज सोशल मीडिया में अलग ही छाप छोड़ी है।इन दिनों सीमा गुसाई लोकगायिका के लोकनृत्य लोकगीत धमाल माचाये है।

    नहीं मिल रहें उचित अवसर

    सीमा गुसाई को ज्यादा पढी लिखी नहीं है मात्र पांचवें पास। सीमा गुसाई के पति सजन गुसाई का कहना है सीमा गुसाई मुंह जबानी देशभक्ति,व उत्तराखंड के देवी देवताओं के जागर व रामाबौराणी रामलीला अभिनय अन्य गाथाएं जानती है।सजन गुसाई ने अपनी सीमा गुसाई को उत्तराखंड के सांस्कृतिक मंचों में बुलाने के लिए शासन प्रशासन को लंबे समय से गुहार लगाई लेकिन सीमा गुसाई जैसी लोकप्रिय लोकगायिका को आज तक उतराखड के सांस्कृतिक मंचों में किसी भी संस्था या शासन प्रशासन ने नहीं बुलाया। सीमा अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी अपनी सुंदर प्रतिभा को लोगों के सामने प्रस्तुत करती हैं।

    इधर प्रताप सिंह नेगी समाजसेवी ने भी कई बार अपने स्तर से शासन प्रशासन को सीमा जैसी लोकप्रिय गायकार के लिए गुहार लगाई। नेगी ने सीमा गुसाई लोकगायिका के लोकगीत, देशभक्ति गीत, देवी देवताओं के जागर अन्य गाथाओं की प्रशंसा की हैँ।

    उत्तराखंड के युवा पीढ़ी के सीमा गुसाई जैसे और भी कई लोक कलाकार है। जो आधुनिक गीतों की भीड़ में कही खो गए है। युवा पहाड़ी गानो के नाम पर आधुनिक फ़िल्मी किस्म के गीत तो सुन रहे। परन्तु वास्तविक पहाड़ी लोक गीतों से दूरी बना ली है।
    इन लोक गीतों के माध्यम से जहाँ हम अपनी संस्कृति, इतिहास व सभ्यता से अवगत होते, वहीं हमें इन लोक गीतों में मार्मिकता, प्रकृति के प्रति प्रेम मातृत्व और भक्ति व प्रेम के भाव भी बड़ी सुंदरता से गाये हुए मिलते हैं।
    सीमा गुसाई की तरह और भी मात्र शक्ति है जिनको उत्तराखंड की गाथाएं व लोकगीत व लोकनृत्य आते हैं। जिनको आज समाज व प्रशासन दोनों के पूर्णजोर सहयोग की जरूरत है लेकिन शासन प्रशासन की ओर से सहयोग नहीं मिलने कोई भी आगे नहीं आ पाती है।

    By swati tewari

    working in digital media since 5 year

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