अब देश में छाया माल्टा फीवर का खतरा, ऐसे बचें
इन दोनों देश के कई राज्यों में चांदीपुर वायरस के गंभीर मामले सामने आ रहे हैं। लेकिन इसी बीच, राज्य में माल्टा फीवर जैसी बीमारी के खतरे की जानकारी मिली है। सेंटर फॉर वन हेल्थ एजुकेशन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा आयोजित एक बैठक में यह आकलन किया गया कि भविष्य में जानवरों और बैक्टीरिया से कौन-कौन सी बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस अध्ययन (ओएचआरएडी) के अनुसार, देश में कई जगहों पर माल्टा फीवर और रैबिज का संदिग्ध खतरा उत्पन्न हो सकता है, हालांकि वर्तमान में माल्टा बुखार के कोई मामले सामने नहीं आए हैं।
माल्टा बुखार क्या है और यह कैसे फैलता है?
माल्टा बुखार, जिसे चिकित्सा की भाषा में ब्रुसेलोसिस कहा जाता है, ब्रुसेला बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया संक्रमित जानवरों के दूध या दूध से बने बिना पाश्चुरीकृत उत्पादों से फैलता है। संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने से भी इस बीमारी का संक्रमण हो सकता है।
किन लोगों को होता है खतरा?
– पशुचिकित्सक और जिनका जानवरों के साथ नियमित संपर्क होता है
– डेयरी फार्म में कार्यरत लोग
– बूचड़खानों में काम करने वाले लोग
– कच्चा मांस या बिना पाश्चुरीकृत दूध उत्पादों का सेवन करने वाले लोग
ब्रुसेलोसिस कैसे फैलता है?
राजस्थान पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के डॉ. आर रावत के अनुसार, ब्रुसेला बैक्टीरिया मुंह, नाक या त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। जब कोई व्यक्ति संक्रमित जानवरों के शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आता है, तो बैक्टीरिया त्वचा में दरारों, नाक या मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसके बाद, यह लिम्फ नोड्स में पहुंच जाता है और वहां धीरे-धीरे बढ़ता है। इसके बाद, यह शरीर के अन्य अंगों जैसे हार्ट, लिवर और हड्डियों को प्रभावित कर सकता है।
लक्षण क्या हैं?
– बुखार
– पसीना आना
– जोड़ो का दर्द
– वजन घटना
– सिरदर्द
– पेट में दर्द
– भूख न लगना या पेट की समस्याएं
माल्टा बुखार से बचाव के उपाय:
– बिना पाश्चुरीकृत दूध का सेवन न करें
– जानवरों के पास जाने से पहले मास्क और दस्ताने पहनें
– मांस को उचित तापमान पर पकाएं और अपने हाथों, बर्तनों और खाना पकाने की सतहों को साफ रखें
– किसी भी संक्रमित जानवर के पास जाने से बचें
ब्रुसेलोसिस का इलाज कैसे किया जाता है?
इस बीमारी का उपचार आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन से किया जाता है। डॉक्टर आमतौर पर दो प्रकार की एंटीबायोटिक्स निर्धारित करते हैं, जिन्हें कम से कम छह से आठ सप्ताह तक लेना पड़ता है। गंभीर लक्षणों की स्थिति में, उपचार लक्षणों की प्रकृति के अनुसार किया जाएगा।
