नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुरुवार को जोशीमठ आपदा के मद्देनजर स्वतः संज्ञान लेते हुए मसूरी के हिल स्टेशन का एक विशेष अध्ययन करने के निर्देश जारी किए हैं। इसने पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए नौ सदस्यीय समिति का भी गठन किया है।
स्वतः कार्यवाही शुरू की
एनजीटी ने समिति को अपना अध्ययन पूरा करने और 30 अप्रैल तक एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले को जागे की सुनवाई के लिए 16 मई को सूचीबद्ध किया गया है। ट्रिब्यूनल ने हाल ही में जोशीमठ आपदा पर मीडिया रिपोर्ट के मद्देनजर स्वतः कार्यवाही शुरू की है। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की गहन क्षमता का समयबद्ध अध्ययन आवश्यक था।”
पीठ ने नोट किया कि उप-सतह सतह सामग्री के विस्थापन के कारण पृथ्वी की सतह के डूबने की सूचना है। यह वहन क्षमता से अधिक अनियोजित निर्माण के कारण है। पीठ ने कहा कि यह मसूरीके लिए भी एक चेतावनी है जहां अनियोजित निर्माण हुए हैं और अब भी हो रहे हैं। पीठ ने कहा,”उपरोक्त पृष्ठभूमि में हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की वहन क्षमता का अध्ययन समग्र रूप से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अनिवार्य प्रतीत होता है।
पीठ ने यह भी कहा, “जैसा कि पहले ही निर्देश दिया जा चुका है, सभी पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्रों में अध्ययन की आवश्यकता को कम किए बिना, हम उपरोक्त मीडिया रिपोर्ट में व्यक्त की गई आशंकाओं के चलते मसूरी के लिए विशिष्ट अध्ययन का निर्देश देते हैं।
नौ सदस्यीय समिति का गठन
न्यायाधिकरण ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय समिति का गठन किया है। अन्य सदस्य हिमालयी भूविज्ञान संस्थान देहरादून, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय और पर्यावरण संस्थान, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) रुड़की, प्रोफेसर जेएस रावत, कुमाऊं विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद राष्ट्रीय रॉक संस्थान होंगे।
ट्रिब्यूनल ने कहा कि समिति वहन क्षमता, जल भूविज्ञान अध्ययन, भू-आकृतिक अध्ययन और अन्य संबद्ध और माकस्मिक मुद्दों के जालोक में पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए उपचारात्मक उपायों का सुझाव दे सकती है।