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    घुश्मेश्वर महिला समिति अल्मोड़ा ने नन्दा देवी में मनाया वृहद हरेला पर्व,हरेला लेकर पहुंची सैकड़ों महिलाएं


    अल्मोड़ा। आज घुश्मेश्वर महिला समिति अल्मोड़ा ने विख्यात नन्दा देवी मन्दिर में वृहद हरेला पर्व मनाया।इस अवसर पर सैकड़ों महिलाएं हरेले को लेकर नन्दा देवी मन्दिर पहुंची जहां हमारे कुमाऊंनी गीतों के द्वारा सबका स्वागत किया गया।

    हरेला कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पर्वतीय संस्कृति को बढ़ावा देना

    इस अवसर पर कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए समिति की अध्यक्ष लता तिवारी ने कहा कि इस हरेला कार्यक्रम को करने का मुख्य उद्देश्य अपनी पर्वतीय संस्कृति को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता के इस दौर में आज बेहद आवश्यक हो गया है कि हमारी पर्वतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों को आयोजित किया जाए।इस अवसर पर सभी महिलाओं ने अपने घर में उगाये गये हरेले के साथ नन्दा देवी मन्दिर में हमारी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ी गीतों के माध्यम से सबका उत्साहवर्धन भी किया।

    कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए महिलाओं ने कहा कि इस हरेला कार्यक्रम को मनाने के पीछे हमारी पहाड़ी संस्कृति को बढ़ावा देना, पर्यावरण की सुरक्षा देना है। सैंकड़ों महिलाओं ने बड़े ही उत्साह के साथ इस कार्यक्रम में अपना प्रतिभाग किया।समिति अध्यक्ष ने आगे कहा कि उत्तराखंड में सावन मास की शुरुआत हरेला पर्व से होती है। यह तारीख 17 जुलाई के दिन आगे-पीछे रहती है। इस दिन सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। हरेला पर्व से 9 दिन पहले हर घर में मिट्टी या बांस की बनी टोकरी में हरेला बोया जाता है।

    लोग अपने रिश्तेदारों से मिलते हैं, और त्योहार का आनंद लेते हैं। कुछ लोग मिट्टी या खेतों में नए पौधों के बीज भी बोते हैं और पर्यावरण को बचाने के लिए ‘प्रणाम’ के रूप में हाथ बंटाते हैं। लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाते हैं जिन्हें डिकारे या डिकर के नाम से जाना जाता है और उनकी पूजा करते हैं।हरेला पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन मास की शुरुआत मानी जाती है।

    सावन भगवान शिव का प्रिय महीना

    सावन मास के हरेला पर्व का विशेष महत्व है सावन भगवान शिव का प्रिय मास है और उत्तराखंड को शिव भूमि भी कहा जाता है। हरेल पर्व के समय शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है और धन्यवाद किया जाता है।इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं। दसवें दिन इसे काटा जाता है।

    4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है।स्वास्थ्य के प्रति सजगता का संदेश है और उत्सव मनाने की प्रवृत्ति हमारे डीएनए में है। उत्सव के लिये समृद्धि चाहिये।हरेली बताता है कि प्रकृति को बचाकर और उसका आदर करते हुए कड़ी मेहनत करो, तभी समृद्धि हासिल होगी और उत्सव मनाओ ये हरेली का मूल संदेश कहा जा सकता है।

    इस कार्यक्रम में विधायक मनोज तिवारी, नगरपालिका अध्यक्ष प्रकाश चन्द्र जोशी,पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष पीताम्बर पाण्डेय,आनन्द सिंह बगडवाल,प्रताप सत्याल, सभाषद राजेन्द्र तिवारी सहित घुश्मेश्वर महिला समिति की अध्यक्ष लता तिवारी,सचिव प्रीति बिष्ट,राधा बिष्ट,राधा तिवारी,लीला जोशी,पूनम आर्या,अनीता कन्नौजिया,कमला कार्की,कमला पाण्डे,प्रभा बोरा,हेमा तिवारी,माधवी बिष्ट,दीपा बिष्ट,रमा लोहनी,ज्योति जोशी,रेखा रौतेला,धीरा तिवारी,तारा तिवारी, पुष्पा मेहरा,प्रेमा बिष्ट,कंचन जोशी,राधा तिवारी उपस्थित रहे।प्रतियोगियों के रूप में बीना बिष्ट,मंजू बिष्ट,सरस्वती आर्या,बिमला तिवारी,कमला साह,दीपा जोशी,धर्मा बंगारी,प्रेमा किरमोलिया,नन्दी नेगी,हंसा गैड़ा,दीपा पाण्डे,किरन बिष्ट,मंजू कार्की,मंजू बिष्ट सहित सैकड़ों महिलाएं उपस्थित रहीं।

    By swati tewari

    working in digital media since 5 year

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