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    Almora literature festival साहित्य, भाषा और संस्कृति पर केन्द्रित विविध सत्रों का आयोजन

    अल्मोड़ा लिट फेस्ट 2025 — प्रथम दिवस (द्वितीय सत्र)

     

    अल्मोड़ा लिट फेस्ट 2025 के प्रथम दिवस के द्वितीय सत्र में साहित्य, भाषा और संस्कृति पर केन्द्रित विविध सत्रों का आयोजन हुआ, जिनमें लेखकों, विद्वानों और कलाकारों ने अपने विचार साझा किए।

     

    दोपहर का आरंभ लेखिका शुभांशी चक्रवर्ती (पुस्तक Past is Forward की लेखिका) और डा. आर. एस. पाल के बीच हुई सारगर्भित चर्चा से हुआ। इस संवाद में शुभांशी चक्रवर्ती ने बताया कि उनकी पुस्तक इस विचार पर आधारित है कि सस्टेनेबिलिटी (स्थायित्व) कोई पाश्चात्य अवधारणा नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा और जीवन-दर्शन का प्राचीन एवं अभिन्न अंग है।

     

    इसके पश्चात “कुमाऊँ की कलम से” शीर्षक सत्र का आयोजन हुआ, जिसका संचालन प्रसिद्ध साहित्यकार अनिल कार्की ने किया। इस सत्र में त्रिभुवन गिरी महाराज एवं दीवा भट्ट ने सहभागिता की। वक्ताओं ने बदलते समय के साथ कुमाऊँनी साहित्य के स्वरूप, उसकी संभावनाओं तथा भावी दिशा पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि कुमाऊँनी भाषा को एक जीवंत भाषा के रूप में बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जो अपनी सांस्कृतिक और भाषायी समृद्धि के कारण विशेष पहचान रखती है।

     

    इसके बाद अनिल कार्की की नवीन कृति “महशीर के मुलुक से” का विमोचन किया गया। यह पुस्तक लेखक के व्यक्तिगत जीवनानुभवों पर आधारित है, जिसमें उन्होंने रामगंगा नदी के तट पर अपने बचपन और जीवन के अनुभवों को संवेदनशीलता से अभिव्यक्त किया है।

     

    अगला सत्र दीवा भट्ट के संयोजन में संपन्न हुआ, जिसमें राजनी गुप्त, “नए समय का कोरस” की लेखिका, ने सहभागिता की। इस संवाद में समकालीन हिंदी साहित्य में प्रस्तुत हो रहे वर्तमान समय के कथानक, सामाजिक मुद्दों और यथार्थ की अभिव्यक्ति पर विचार-विमर्श हुआ।

     

    सांयकालीन सत्र में अल्मोड़ा के सुप्रसिद्ध कलाकार प्रभात साह ने अपनी सुरीली प्रस्तुति से कार्यक्रम को संगीतमय बना दिया। उन्होंने होली, ठुमरी और रसिया शैली की रचनाओं को राग भीमपलासी और राग भैरवी में प्रस्तुत किया, जिससे सभागार का वातावरण मंत्रमुग्ध हो उठा।

     

    इस प्रकार, अल्मोड़ा लिट फेस्ट 2025 के प्रथम दिवस का द्वितीय सत्र साहित्य, भाषा और संगीत के अद्भुत संगम के रूप में संपन्न हुआ, जिसने कुमाऊँ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की।

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