• Mon. Dec 1st, 2025

    Almora: मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञों की गैरमौजूदगी कोई प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि मौन हत्या है” — सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे

    अल्मोड़ा। “जिस मां को समय पर इलाज नहीं मिला, आज उसकी असामयिक मौत मेरी चेतना बन चुकी है। मैं कसम खा चुका हूँ — अब किसी और मां को इलाज के बिना मरने नहीं दूंगा।” — ये शब्द हैं सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे के, जो एक बार फिर अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज की चिकित्सा व्यवस्था में व्याप्त भारी खामियों को लेकर मुखर हुए हैं।

    प्राचार्य से भेंट, व्यवस्थाओं पर गहरी चिंता

    संजय पाण्डे ने मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य से प्रो. सी. पी. भैसोड़ा से औपचारिक भेंट कर, संस्थान में कार्डियोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन जैसे अत्यंत आवश्यक विशेषज्ञों की नियुक्ति न होने पर गहरा रोष व्यक्त किया। उन्होंने स्पष्ट कहा:
    “उत्तराखंड में सबसे अधिक मौतें दिल के दौरे और सिर की चोट से हो रही हैं, और पहाड़ों के सबसे बड़े कॉलेज में इन दोनों के विशेषज्ञ तक नहीं हैं — यह कैसी स्वास्थ्य नीति है?”

    राजनीति चुप है, जनता मर रही है”

    संजय ने सीधे सवाल उठाया कि आखिर क्यों अब तक किसी विधायक या सांसद ने इन पदों की स्वीकृति के लिए विधानसभा या संसद में आवाज़ नहीं उठाई?
    “क्या विकास सिर्फ भाषणों और नारों में होगा? क्या अस्पताल सिर्फ इमारतों तक सीमित रहेंगे? जो सरकारें मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन कर वोट मांगती हैं, क्या उन्हें अस्पताल में तड़पती ज़िंदगी दिखाई नहीं देती?”
    जनता को मिलता है सिस्टम का ‘व्यस्त सुर’
    संजय पाण्डे ने बताया कि दूर-दराज से आने वाले मरीजों को बेस चिकित्सालय में न तो सही मार्गदर्शन मिल पाता है और न ही समय पर सेवा। “जनसंपर्क अधिकारी का काम जनता से संवाद करना है, लेकिन जब कॉल ही रिसीव नहीं होता, तो आम जनता किससे पूछे – गूगल से?”
    प्राचार्य ने इस पर संज्ञान लेते हुए, संबंधित अधिकारी से स्पष्टीकरण लेने और सुधार की बात कही।

    डिजिटल इंडिया, लेकिन काग़ज़ की पर्ची भी नहीं!

    उन्होंने कहा, “डिजिटल इंडिया तब तक मज़ाक है जब पहाड़ की एक बूढ़ी महिला अस्पताल में पर्ची बनवाने के लिए किसी स्मार्टफोनधारी की तलाश करती घूमे।”
    उन्होंने मांग की कि की-पैड फोन रखने वालों और बुज़ुर्गों के लिए मैनुअल पर्ची प्रणाली हर हाल में बहाल की जाए।

    विशेषज्ञों की स्थिति (सरकारी आँकड़ों के अनुसार):
    पत्रांक: 2024/स्वास्थ्य/मुख्यालय/3267, दिनांक 04.03.2024)

    जिला कार्डियोलॉजिस्ट न्यूरोसर्जन
    अल्मोड़ा स्वीकृत नहीं स्वीकृत नहीं
    पिथौरागढ़ 1 (रिक्त) स्वीकृत नहीं
    नैनीताल 1 (कार्यरत) 1 (रिक्त)
    देहरादून 2 (कार्यरत) 2 (कार्यरत)
    चंपावत, टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, बागेश्वर स्वीकृति तक नहीं।

    यह सरकारी आंकड़े नहीं, पहाड़ की बदनसीबी की सूची है” — संजय पाण्डे

    अब ये सिर्फ़ एक माँ का सवाल नहीं, पूरे पहाड़ की पुकार है

    मैंने अपनी माँ को खोया है, लेकिन अब किसी और बेटे को मां की लाश लेकर दर-दर भटकने नहीं दूंगा। अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज में कार्डियोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन की नियुक्ति तक मैं शांत नहीं बैठूंगा। यह मेरी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, अब एक सामाजिक संघर्ष है।”

    जनप्रतिनिधियों से अंतिम अपील

    “आप भाषणों में कहते हैं कि स्वास्थ्य आपकी प्राथमिकता है — तो अब साबित कीजिए। इस मुद्दे को विधानसभा और संसद में उठाइए। जिनके वोट से आप चुनकर आए हैं, आज वही इलाज के बिना मर रहे हैं। यदि अब भी चुप्पी रही, तो यह मौन भी इतिहास में अपराध माना जाएगा।”

    By D S Sijwali

    Work on Mass Media since 2002 ........

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *