देवभूमि की हिमालय की चरणों से इन्सान के जीवन जीने के लिए भेजी गई अमृत धारा हमारे शहर हल्द्वानी रानीबाग तक सीसे की तरह साफ सुथरी जलधारा हमारे हाथ लगते ही आज बिषधारा बन चुकी है। जैसे हम सम्पन्नता की ओर अग्रसर होते गये अमृत धारा पर अत्याचार अपने परम तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
चूंकि यह हमारी विडम्बना बन चुकी है कि मैं ही सही, मैं क्यों, मैंने नहीं, मैरा आंगन सिर्फ साफ, जिस बिडम्बना के कारण, अमृत दायिनी, बिष दायिनी बन चुकी है। खाश कर ये अमृत दायिनी को हमारे हर तरह के मैले को धारण करने की जिम्मेदारी दे दी है। यो तो संबन्धित सरकारी महकमों का भी उतना ही दायित्व है जितना हम इन्सान का, पर चूंकि महकमों में भी तो हम ही काबीज हैं जो अपने रोज मर्रे के कचरे को अमृत दायिनी के हवाले करके आते हैं और दूसरी विडम्बना की हम जिस महकमे की खाते हैं उसी को कोसते भी है और भ्रष्टाचार को अपनी रंगों में घोल चुके हैं।
आज से क़रीब एक दशक पहले रानीबाग से चलने वाली अमृत दायिनी जो गौला के नाम से जानी जाती है हमारे व पशु पक्षियों के पीने से लेकर खेत खलिहानों की जीवनधारा हुआ करती थी , और आज हमारे करतूतों के कारण जहर बन चुकी है।
मुख्य कारण अनेक कारणों के अतिरिक्त, हमारे द्वारा इसे दूषित किया जाना और दूसरा इसके बहाव के पथ का जिर्णोद्धार न किया जाना है।
अतः हमारी इसके प्रति जागरूकता व सम्बंधित महकमों को जगाना आज की आवश्यकता है वरन हम जोशीमठ में प्रकृति का भयावहता देख वह सुन ही रहे हैं।
—भुवन चन्द्र पान्डेय,
पुत्र श्रीलक्ष्मीदत्त पान्डेय,
लक्ष्मीईन्क्लैव, नाथुपूर चौम्वाल,
नाथुपूर दूध डेरी के पास
मोटाहल्दू, नैनीताल, उ.ख.
पिन 263139
Tel 9412302906