• Mon. Dec 1st, 2025

    इंदिरा एकादशी व्रत 17 सितंबर, बुधवार को मनाया जाएगा। इस वर्ष इंदिरा एकादशी पर चार शुभ संयोग बन रहे हैं। इस दिन परिघ योग और शिव योग के साथ-साथ पुनर्वसु तथा पुष्य नक्षत्र का विशेष महत्व रहेगा।पितृ पक्ष में आने वाली आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को ही इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु के ऋषिकेष स्वरूप की पूजा-अर्चना करते हैं और इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha) का श्रवण करते हैं।ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका उद्धार होता है। साथ ही, व्रत रखने वाले भक्त को जीवन के अंत में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

    आइए जानते हैं इंदिरा एकादशी की व्रत कथा, शुभ मुहूर्त और पारण का समय।

    गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi Vrat) का व्रत करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और मृत्यु के बाद आत्मा को उच्च लोक में स्थान मिलता है। यही नहीं पद्म पुराण में तो यह भी कहा गया है कि इसका पुण्य कन्यादान और हजारों सालों की तपस्या से भी ज्यादा होता है! तो आइए जानते हैं, इस पवित्र व्रत की कथा और इसे करने का सही तरीका।

    ✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️

    एकादशी तिथि का आरंभ: 17 सितंबर, सुबह 12:21 बजे से

     

    एकादशी तिथि का समापन: 17 सितंबर, रात 11:39 बजे तक

     

    पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 6:07 बजे से 9:11 बजे तक

     

    पारण का समय: 18 सितंबर, सुबह 6:07 बजे से 8:34

    बजे तक

    ✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️

    राजा इंद्रसेन की कथा

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नगरी में एक धर्मात्मा राजा इंद्रसेन राज करते थे। एक दिन उनके दरबार में देवर्षि नारद जी प्रकट हुए। नारद जी ने बताया कि वे यमलोक से आ रहे हैं, जहां उन्होंने राजा के पिता को देखा। उन्होंने बताया कि राजा के पिता ने एकादशी का व्रत खंडित कर दिया था, जिसके कारण उन्हें यमलोक में रहना पड़ रहा है।

     

    नारद जी ने राजा को सुझाव दिया कि अगर वे विधि-विधान से इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का व्रत करें तो उनके पिता को यमलोक से मुक्ति मिल जाएगी और उन्हें स्वर्ग प्राप्त होगा। यह सुनकर राजा इंद्रसेन ने तुरंत नारद जी से व्रत की विधि पूछी।

     

    नारद जी ने बताया कि एकादशी के दिन सुबह स्नान करके अपने पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान करें। भगवान शालिग्राम की स्थापना करके उनकी पूजा करें। रात में जागरण करें। अगले दिन यानी द्वादशी को फिर से पूजा-पाठ करके दान करें और फिर पारण करके व्रत पूरा करें।

     

    राजा ने नारद जी के बताए अनुसार पूरे विधि-विधान से व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके पिता को तुरंत यमलोक से मुक्ति मिली और वे स्वर्ग चले गए। इस तरह यह व्रत पितरों के उद्धार का एक अद्भुत माध्यम बन गया।

    By swati tewari

    working in digital media since 5 year

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *