सरकार सहित कोई भी इकाई बिना कानूनी अधिकार के धन रोक नहीं सकती- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार सहित कोई भी इकाई बिना कानूनी अधिकार के धन रोक नहीं सकती और ऐसी स्थिति में वास्तविक मालिक को ब्याज सहित राशि लौटाई जानी चाहिए। यह ऐतिहासिक फैसला दिल्ली सरकार से जुड़े एक मामले में आया, जिसमें कोर्ट ने सरकार को 28.1 लाख रुपये की वापसी पर 4.35 लाख रुपये ब्याज देने का निर्देश दिया। यह मामला 2016 में एक संपत्ति लेनदेन के लिए खरीदे गए ई-स्टांप पेपर के गुम होने से जुड़ा था।
ब्याज भुगतान से बच नहीं सकती सरकार: सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि भले ही कोई विशेष क़ानूनी प्रावधान न हो, सरकार को अनुचित रूप से रोकी गई धनराशि पर ब्याज देना होगा। यह फैसला 18 फरवरी को सुनाया गया था और इस महीने जारी किया गया। इस निर्णय से सरकारी एजेंसियों द्वारा कर और वित्तीय मामलों में देरी से होने वाले रिफंड से जुड़े कई अन्य मामलों पर प्रभाव पड़ सकता है।
पूर्व महिला आयोग अध्यक्ष ने की थी याचिका दायर
यह मामला पूर्व राष्ट्रीय महिला आयोग अध्यक्ष पूर्णिमा अडवाणी और उनके पति शैलेश के हाथी द्वारा दायर किया गया था। जुलाई 2016 में उन्होंने दिल्ली में एक संपत्ति लेनदेन के लिए 28.1 लाख रुपये का ई-स्टांप पेपर खरीदा था। लेकिन होम लोन प्रक्रिया में देरी के कारण बिक्री विलेख निष्पादित नहीं हो सका। अगस्त 2016 में उनके दलाल ने बताया कि स्टांप पेपर गुम हो गया है, जिसके बाद उन्होंने धन वापसी के लिए आवेदन किया।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जिम्मेदारी निभाने को कहा
सरकार की ओर से लगातार देरी किए जाने पर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार सिर्फ इसलिए अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती क्योंकि ब्याज देने का कोई स्पष्ट क़ानूनी प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रिफंड में देरी से प्रभावित व्यक्ति को उचित मुआवजा मिलना चाहिए।
फैसले के व्यापक प्रभाव
कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को महत्वपूर्ण करार दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा “न्यायिक पुनर्स्थापन सिद्धांत” लागू करते हुए ब्याज देने का आदेश भविष्य में सरकारी और निजी वित्तीय विवादों में एक मिसाल बनेगा।
दिल्ली सरकार को दो महीने में ब्याज भुगतान का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वह दो महीने के भीतर ब्याज सहित धनराशि लौटाए। इस फैसले से यह संदेश गया है कि सरकारी विभाग बिना वजह धन रोक कर नहीं रख सकते और उन्हें नागरिकों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करना होगा।