सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है, जिनमें से एक पापांकुशा एकादशी है, जिसे बेहद पुण्यकारी व्रत माना जाता है। इस व्रत को भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है। इस दिन श्रद्धालुओं को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जो पापों से मुक्ति दिलाती है और जीवन में सुख एवं संतोष लाती है। यदि आप भी पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने जा रहे हैं और इसका पूरा लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो पूजा का सही समय और विधि जानना अत्यंत आवश्यक है।
पापांकुशा एकादशी व्रत की तुलना किसी अन्य व्रत से नहीं की जा सकती। इस एकादशी के दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा और आराधना की जाती है, जिससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। पापांकुशा एकादशी हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ सूर्ययज्ञ के समान फलदायी मानी जाती है। पद्म पुराण में वर्णित है कि जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा पूर्वक सुवर्ण, तिल, भूमि, गाय, अन्न, जल, जूते और छाता दान करता है, उसे यमराज के दर्शन नहीं होते। साथ ही, जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है, वह स्वर्ग का भागी बनता है। इस दिन किया गया दान अत्यंत शुभ फलदायी होता है।
पापांकुशा एकादशी कब है?
- एकादशी तिथि की शुरुआत- 02 अक्टूबर को शाम 07:10 मिनट पर
- एकादशी तिथि का समापन- 03 अक्टूबर को शाम 06:32 मिनट परसनातन धर्म में व्रत सूर्योदय के समय की तिथि के अनुसार रखा जाता है, इसलिए 3 अक्टूबर को उपवास करना श्रेष्ठ रहेगा।
पापांकुशा एकादशी पूजा विधि
- ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थान को साफ कर एक वेदी पर भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
- उन्हें पीले फूल, पीली मिठाई, हल्दी और गोपी चंदन से सजाएं।
- पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाएं।
- पूजा में तुलसी पत्र अवश्य अर्पित करें (एक दिन पूर्व तोड़ा हुआ या गिरे हुए पत्ते उपयोग करें)।
पापांकुशा एकादशी पर इन मंत्रों का जाप करें
- ॐ नमोः नारायणाय नमः।
- ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः
- ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि । तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
ॐ विष्णवे नम:
पापाकुंशा एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! आश्विन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? आप कृपा कर इसकी विधि और फल कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! पापों का नाश करने वाली एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। हे राजन! इस दिन मनुष्य को विधिपूर्वक विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए।श्रीकृष्ण बताते हैं कि प्राचीन समय की बात है। विध्यांचल पर्वत पर एक बहुत ही क्रूर बहेलिया रहा करता था। उसका नाम क्रोधन था। उसने जीवन भर निर्दोष पशु-पक्षियों और जीवों की हत्या की थी। इसके साथ ही वह हिंसा, लूटपाट, गलत संगति रखता था। लेकिन उसे अपनी मौत से बहुत डर लगता था। बुरे कर्मों में जीवन व्यतीत करने की वजह से जब उसका अंत समय आया तो यमराज के अति भयानक दूत उसे अपने साथ नरक ले जाने के लिए आ गए।जब उसे दूत दिखने शुरू हो गए तो वह समझ गया कि अब उसका अंत करीब आ गया है तब वह ऋषि अंगारा के आश्रम पहुंचा। वहां जाकर उसमें ऋषि से प्रार्थना की कि आप मेरी सहायता कीजिए। तब ऋषि अंगारा ने उनसे कहा कि पहले तुम यह संकल्प लो कि तुम श्री हरि की शरण में हो और फिर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि यानी पापांकुशा एकादशी के दिन व्रत रखना। इससे तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे जिससे तुम्हें नरक नहीं भोगना पड़ेगा।ऋषि के कहने पर क्रोधन ने इसी विधि से व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसे यमराज के दूतों से मुक्ति मिली और श्री हरि की शरण प्राप्त हुई। तब से ही पापांकुशा एकादशी का व्रत किया जाने लगा. जो लोग भी अपने पापों से मुक्ति पाना चाहते हों उन्हें इस दिन व्रत करना चाहिए।