सावन का आगमन
जमीन गीली है आसमां है बादलों से भरा
ना ही धूप है ना ही अंधेरा
कोहरे से ढके हुए पहाड़ है
ओस से सनी डालियां
पानी से डबडबाता नौला है
फसलों से लहराते खेत है
कल कल बहती नदियां है
ऊंचे पहाड़ों से गिरते झरने हैं
सावन का महीना है
महादेव का जयकारा है
भक्तों की भीड़ है बाबा का ही सहारा है
बरसात का मौसम है
बारिश का आगमन है
मन को भाता महीना सावन है सब महीनों में पावन है
सावन का हरेला है
मंदिरों में लगा मेला है
भीड़ तो यहां बहुत है
फिर भी हर इंसान अकेला है।
कविता बहुगुणा