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    कुमाउनी जनेऊ पूर्णिमा के रूप में मनाते है रक्षाबंधन, सभी को बांधा जाता है रक्षासूत्र

    उत्तराखंड का श्रावण पूर्णिमा जन्यू पून्यु हर साल उत्तराखंड में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस अधिमास के चक्कर में दो पुणिमा होने के कारण भादो के 30अगस्त व 31अगस्त का मूहर्त बताया जा रहा है।

    उत्तराखंड राज्य में रक्षाबंधन के साथ साथ के उत्तराखंड का धार्मिक व यज्ञोपवीत जन्यू पून्यु या रक्षा पुन्यु मनाने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। रक्षाबंधन के दिन उत्तराखंड में एक तरफ भाई बहिनों का रक्षा बन्धन धूमधाम से मनाया जाता है। दूसरी तरफ उत्तराखंड का प्राचीन काल से ही जन्यू पून्यु का त्यौहार भी धूमधाम से मनाया जाता है।आईए इस जन्यू पून्यु के बारे में बताएं।एक महीने पहले से उत्तराखंड बड़े बुजुर्ग , चाहे ब्रहामण हो चाहे ठाकुर , चाहे अन्य जाति का सभी लोग अपने अपने तरीके से अपने अपने पुरोहित के द्वारा बताए गए विधि विधान से रुई को कातकर हाथ में लट्टू के सहारे जनेऊ बनाते हैं ।कुछ पर्वतीय क्षेत्रों में लोग अपनी मेहनत से हाथ जनेऊ बनाकर जन्यू पून्यु के समय पर अपने निकटतम मार्केट पर लेजाकर बेचते हैं ।जो जन्यू पून्यु के समय पर सभी लोगों के लिए काम आता है।

    सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी कहते है, उत्तराखंड राज्य में आज से 30 साल पहले जन्यू पून्यु मनाने की प्रथा ऐसी थी जिन जिन लोगों ने हाथ से बनाई गई जनेऊ होती थी सब लोग स्नान करके अपने आस पास के नदी या घाट या मंदिरों में जाकर इन जनेऊ का शुद्धिकरण अपने पंडित लोगों से कराया करते थे इसमें तर्पण व संस्कृत भाषा में यज्ञोपवीत कहा जाता है। यह लोक-पर्व भाई-बहन से अधिक यजमानों की रक्षा का लोक पर्व रहा है।

    इन जनेऊ का शुद्धिकरण के लिए तीन सूत्र बोला जाता ब्रहमा, विष्णु ,महेश ये तीन सूत्र पित्त ,ञण, देव ञण,श्रिशी ञण के प्रतीक होते हैं। जनेऊ में पांच गाठ लगाई जाती है पांच यज्ञो पांच ज्ञानद्रियो व पांच कर्मों के प्रतीक हैं। इसके बाद इस तर्पण में इन जनेऊ का शुद्धिकरण करके बाएं कंधे से दाये भुजा की तरफ पहनाया जाता है।ये तो प्राचीन से चली आ रही प्रथा है। जन्यू पून्यु के दिन हर जजमान के घर परिवार में पंडित लोग जाते है, एक रक्षा धागा व जनेऊ बांधने की परंपरा है हर जजमान अपने पंडित को इस जन्यू पून्यु में रक्षा धागा व जनेऊ धारण करने के उपलक्ष्य में दक्षिणा भी देते हैं।

    लेकिन उत्तराखंड में समय के अभाव के कारण व उत्तराखंड के पलायन के कारण अब उत्तराखंड में जन जन्यू पून्यु के तर्पण व जनेऊ बनाने की प्रक्रिया व जनेऊ देने की प्रक्रिया बहुत कम होते जा रही है। लोग रेडीमेड जनेऊ लाकर एक दिन के लिए इस्तेमाल करते फिर निकाल देते हैं उत्तराखंड में किसी भी तिथि त्यौहार या किसी भी धार्मिक प पौराणिक कथाओं के प्रति कोई ना कोई राज है इसलिए ये त्यौहार मानये जाते हैं।

    सामाजिक कार्यकर्त्ता प्रताप सिंह नेगी

    By swati tewari

    working in digital media since 5 year

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