पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को मिले जनजाति का दर्जा, सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी ने मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जनजाति का दर्जा देने की मांग करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा। समाजसेवी प्रताप सिंह नेगी ने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों को जनजाति क्षेत्र घोषित करने की मांग की है। उन्होंने कहा इसको लेकर शीघ्र ही पर्वतीय समझ आंदोलन करेगा।श्री नेगी के मुताबिक प्राचीन काल से ही उत्तराखंड के मूल निवासी खस लोग माने जाते हैं। हमारी संस्कृति रीति रिवाज पूजा पाठ पद्धति पूरी तरह जनजाति है। आज़ ही नहीं प्राचीन काल से समूचे उतराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों की परंपरा संस्कृति रीति रीवाजें एक पहाड़ी रीति रिवाजें हैं। यहां के लोगों का नवरात्रि में देवी देवताओं की पूजा बलि पूजा करना प्राचीन काल से ही प्रचलित है। इसलिए उतराखंड को देवभूमि कहा जाता है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी हर देवी देवताओं के नाम पर अलग-अलग कहावत है। जैसे झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य, प्रदेश, उड़ीसा, बंगाल आदि राज्यों की परंपरा जनजाति के नाम से जानी जाती है। उसी प्रकार उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र भी जनजाति के लोग हैं।
जैसे जम्मू कश्मीर के पहाड़ी पंडितों, व लेह लद्दाख के लोगों व छत्तीसगढ़, झाड़खंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आदि राज्यों के लोगों को जनजाति के नाम से जनजाति का दर्जा प्राप्त है ऐसे ही उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों को भी जनजाति का दर्जा दिया जाना बाहिए। प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता ने बताया उतराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों का रहन सहन व खान पान संस्कृति परंपरा झाड़खंड, छत्तीसगढ़ , उड़ीसा, मध्य प्रदेश की तरह है। इसलिए उतराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को इन राज्यों की तरह जनजाति का दर्जा दिया जाय। ताकि पहाड़ों के पर्वतीय क्षेत्रों के नये युवा पीढ़ी का उज्जवल भविष्य बन पाय।
अगर शासन प्रशासन ने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों को जनजाति दर्जा दिलाने के लिए कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं की तो आने वाले भविष्य में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के मूल निवासियों के द्वारा उग्र आंदोलन करने पर मजबूर होगा।