परमात्मा के एहसास में रहना ही भक्ति- सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज
अल्मोड़ा। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन अध्यक्षता में उत्तराखंड के अल्मोड़ा शहर में एक विशाल निरंकारी संत समागम का आयोजन हुआ जिसमें अल्मोड़ा एवं उसके आसपास के क्षेत्रों से सभी संतों ने हिस्सा लेकर सतगुरु माता जी के पावन प्रवचनों द्वारा स्वयं को निहाल किया।
सभी इंसान एक समान
सतगुरु माता जी ने फरमाया कि सत्संग रूप में एकत्रित होने का मकसद ईश्वर परमात्मा निराकार के साथ जुड़ना है। सभी इंसान एक समान है कोई ऊंचा कोई नीचा नहीं। जाति पाति, ऊंच नीच के भ्रम के कारण मनों में नफरत भरी होती है। जब इस ब्रह्मज्ञान द्वारा परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है तो सभी में इसका रूप देखकर किसी से भी भेदभाव का कोई अस्तित्व नहीं रहता। सभी परमात्मा की रचना है तो इस परमात्मा से जब प्रेम हो गया तो इसकी संपूर्ण रचना, हर इंसान से प्रेम हो जाता है।
मानुष जन्म अनमोल है
मनुष्य योनि की अवस्था का ज़िक्र करते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि मानुष जन्म अनमोल है और यह सभी योनियों में श्रेष्ठ है। युगो युगो से संत महात्माओं ने यही संदेश दिया है कि इस मनुष्य योनि में अपने जीवन का कल्याण कर लो। परमात्मा की प्राप्ति करना ही इस जीवन का परम लक्ष्य है। इस मनुष्य जीवन में यह प्राप्ति हो जाए तो जीना भी भक्ति बन जाता है फिर जब हर कार्य भक्ति के अंतर्गत होता है तभी हम मुक्ति के हकदार भी बनते हैं।
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सतगुरु माता जी ने उदाहरण सहित समझाया कि जिस प्रकार लाइट ऑफ करते ही घर में अंधेरा छा जाता है। ठीक उसी प्रकार परमात्मा को भुला देने मात्र से ही मनों में अनेक भ्रम, नफरत, अहंकार और बुराईयां घर कर जाती है इसलिए हर समय इस प्रभु परमात्मा के एहसास में रहना ही भक्ति है।
भक्ति किसी सौदे का नाम नहीं
भक्ति का जिक्र करते हुए सतगुरु माता जी न कहा कि भक्ति किसी सौदे का नाम नहीं कि मेरा काम बन जाए तो भक्ति करें जहां प्यार का रिश्ता होता है वहां सौदेबाजी नहीं होती। समागम में भक्तों ने स्थानीय भाषा का सहारा लेते हुए अनेक गीत, कविताऐं एवं विचारों के माध्यम से सत्गुरु का आशीर्वाद प्राप्त किया।
अल्मोड़ा के संयोजक के एस रैकूनी जी ने सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी का स्वागत किया एवं हृदय से उनका आभार प्रकट किया। साथ ही उत्तराखंड सरकार का सहयोग के लिए धन्यवाद भी किया। समागम में सतगुरु माता जी के दिव्य दर्शन करके सभी भक्तो के मनों में अपने सतगुरु के प्रति कृतज्ञता का भाव था।