“विलुप्त होती हिन्दी भाषा”… डा. कविता हर्ष का लेख
हमारे देश में पूर्वकाल से ही हिन्दी भाषा का प्रचलन रहा है जिसे हमे अपने देश में अभी भी जीवित रखना चाहिये। लेकिन आजकल हमारे देश में ही हिन्दी भाषा लुप्त होती जा रही है। तथा पाश्चात्य भाषा अथवा विदेशी भाषा को ज्यादा बढ़ावा मिल रहा है।
आजकल हर क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का प्रचलन हिन्दी के बजाये ज्यादा हो रखा है। इससे हमारी मातृभाषा विलुप्त होती जा रही है।
आजकल समाज में कुछ लोगो की सोच यह बन गयी है कि अग्रेजी भाषा बोलने वाला सवोर्त्तम है चाहे वह अंग्रेजी अशुद्ध ही बोल रहा हो।
मेरा मानना ये है कि अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होना चाहिये लेकिन कुछ हद तक जहाँ पर उसकी आवश्यकता है। क्योंकि जितनी भी नयी तकनीके व नयी-२ खोजे दुनिया में हुई वो सभी बाहरी वैज्ञानिको द्वारा की गयी है। तथा इन नयी-२ खोजो का वर्णन भी अग्रेजी भाषा में ही किया गया है। इसलिये अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी होना चाहिये। लेकिन अंग्रेजी भाषा के साथ-२ हमारी मातृभाषा हिन्दी को भी नहीं भूलना चाहिये। क्योंकि पहले हम एक हिन्दुस्तानी है इसलिए हिन्दी ही हमारी सर्वप्रथम तथा सर्वप्रिय भाषा होनी चाहिये।