“मियां-तियां” और “पाकिस्तानी” कहने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘अप्रिय टिप्पणी, लेकिन अपराध नहीं’
सुप्रीम कोर्ट ने एक सरकारी अधिकारी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में फंसे व्यक्ति को बरी कर दिया है। उस पर अधिकारी को “मियां-तियां” और “पाकिस्तानी” कहने का आरोप था। अदालत ने कहा कि यह बयान “अप्रिय” हो सकते हैं, लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के तहत कोई अपराध नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया फैसला
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और एस सी शर्मा की पीठ ने 11 फरवरी 2024 को अपने फैसले में कहा कि आरोपी की टिप्पणियां शिकायतकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली नहीं मानी जा सकतीं। अदालत ने कहा, “बयानों को अनुचित माना जा सकता है, लेकिन ये कानूनी अपराध की श्रेणी में नहीं आते। इसलिए, आरोपी को आईपीसी की धारा 298 के तहत बरी किया जाता है।”
क्या था पूरा मामला
हरि नंदन सिंह नाम के व्यक्ति ने सूचना के अधिकार कानून (RTI) के तहत बोकारो के अपर कलेक्टर से जानकारी मांगी थी। जब जानकारी संतोषजनक नहीं मिली, तो उन्होंने अपील दायर की। नवंबर 2020 में जब शिकायतकर्ता, जो चास अनुमंडल कार्यालय में उर्दू अनुवादक के रूप में कार्यरत थे, उन्हें जानकारी देने पहुंचे, तो सिंह ने कथित रूप से उनकी धार्मिक पहचान को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं और धमकाने का प्रयास किया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने अनुमंडल पदाधिकारी को इसकी सूचना दी, जिन्होंने एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए।
किन धाराओं में दर्ज हुआ था केस
पुलिस ने हरि नंदन सिंह के खिलाफ कई धाराओं के तहत चार्जशीट दायर की, जिनमें शामिल थीं –
– धारा 298: जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयास
– धारा 504: शांति भंग करने के इरादे से अपमान
– धारा 506: आपराधिक धमकी
– धारा 353: सरकारी कर्मचारी को ड्यूटी करने से रोकने के लिए बल प्रयोग
– धारा 323: स्वेच्छा से चोट पहुंचाना
निचली अदालत और हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत
मजिस्ट्रेट अदालत ने आरोपी को तलब किया और कहा कि धारा 298, 504 और 353 के तहत आरोप तय करने के पर्याप्त आधार हैं। हालांकि, धारा 323 और 406 को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिया गया। आरोपी ने खुद को बरी करने के लिए याचिका दायर की, लेकिन पहले अपर सत्र न्यायाधीश और फिर झारखंड उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार किया बरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी ने कोई हमला या बल प्रयोग नहीं किया, इसलिए उस पर धारा 353 लागू नहीं होती। साथ ही, धारा 504 के तहत भी उसे दोषी नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके कार्यों से शांति भंग होने की कोई संभावना नहीं थी। इन तर्कों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।