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    किसी गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना ही सज़ा के लिए काफी है- सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने 2011 के फैसलों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एक प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता से किसी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा जब तक कि वह हिंसा में शामिल न हो या उसे उकसाया हो, यह कहते हुए कि इस तरह का गैरकानूनी संघ संप्रभुता और अखंडता के भारत की हितों के खिलाफ है।


    सुप्रीम कोर्ट ने आज UAPA कानून को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले के अनुसार अब प्रतिबंधित संस्था का सदस्य होना भी कार्रवाई के दायरे में आएगा। इसका मतलब है कि भले की व्यक्ति ने कुछ न किया हो लेकिन अगर वो किसी गैरकानूनी संगठन का सदस्य है तो भी गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानि  UAPA के तहत उसको अपराधी माना जाएगा। ये फैसला जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने फैसला सुनाया।

    कोर्ट ने अपना ही फैसला पलटा

    सुप्रीम कोर्ट ने आज इस फैसले के दौरान साल 2011 का दिया अपना ही फैसला पलट दिया है। जस्टिस एमआर शाह की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के उस पुराने फैसले को बदला, जिसमें कहा गया था कि सिर्फ सदस्य होना अपराध नहीं और आज कोर्ट ने यूएपीए की धारा 10(ए)(1) को सही ठहराया है। सालों पहले सुप्रीम कोर्ट ने अरूप भुयन बनाम असम सरकार,  इंदिरा दास बनाम असम सरकार और केरल सरकार बनाम रनीफ मामलों में दिए अपने फैसले में कहा गया था कि सिर्फ गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना UAPA के तहत अपराध नहीं है। अपराधी होने के लिए कोई कार्य करना जरूरी है।

    कोर्ट ने क्या टिप्पणी की ?

    जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने अपने फैसले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), 1967 की धारा 10(ए)(1) को भी सही ठहराया है। UAPA की ये धारा गैरकानूनी संगठन की सदस्यता को भी अपराध घोषित करती है। साल 2011 में जस्टिस मार्कंडेय काटजू की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय बेंच ने कहा कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने भर से कार्रवाई नहीं होगी। कोर्ट ने आज अपने फैसले में कहा कि 2011 का फैसला जमानत याचिका पर दिया गया था। उसमें कानून के प्रावधानों की संवैधानिकता पर सवाल नहीं उठाया गया था। साथ ही गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की संवैधानिकता को भी सही ठहराया गया था। साल 2014 में जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था। जस्टिस एमआर शाह की अध्यक्षता वाली बेंच ने 9 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज सुनाया है।

    UAPA क्या है ?

    UAPA का फुल फॉर्म Unlawful Activities (Prevention) Act होता है। इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है। इस कानून के तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नित करती है जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं या इसके लिए लोगों को तैयार करते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। मूल रूप से UAPA को वर्ष 1967 में लागू किया गया था। इसे वर्ष 2004 और वर्ष 2008 में आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में संशोधित किया गया। अगस्त 2019 में संसद ने कुछ आधारों पर व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने के लिये UAPA (संशोधन) बिल, 2019 को मंजूरी दी। जिसके बाद इस कानून को ताकत मिल गई कि किसी व्यक्ति को भी जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। पहले यह शक्ति केवल किसी संगठन को लेकर थी। यानी इस एक्ट के तहत किसी संगठन ​को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाता था।

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