horse library Nainital
जानिए इस अनोखी लाइब्रेरी के बारे में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 सितंबर रविवार को अपने मन की बात कार्यक्रम में नैनीताल के घोड़ा लाइब्रेरी का जिक्र किया। उन्होंने कहा नैनीताल जिले में कुछ युवाओं ने बच्चों के लिए अनोखी घोड़ा पुस्तकालय की शुरुआत की है| इस लाइब्रेरी की सबसे बड़ी विशेषता है कि दुर्गम इलाकों में भी इसके जरिए बच्चों तक पुस्तकें पहुँच रही हैं और इतना ही नहीं, ये सेवा, बिल्कुल निशुल्क है।
आपको बता दें कि एक चलती फिरती लाइब्रेरी, घोड़ा लाइब्रेरी, या “हॉर्स लाइब्रेरी”, नैनीताल, उत्तराखंड में एक अनोखी लाइब्रेरी है। यह पुस्तकालय एक घोड़ा है जो दूर-दराज के इलाकों में किताबें ले जाता है जहां स्कूल बंद हैं। घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत उत्तराखंड की सुदूर पहाड़ियों में बच्चों तक किताबें पहुंचाने के लिए एक नैनीताल निवासी द्वारा की गई थी। पुस्तकालय से नैनीताल के 12 गाँवों को लाभ हुआ है। घोड़ा लाइब्रेरी का संचालन शुभम् बधानी करते है।
घोड़ा लाइब्रेरी में सामान्य ज्ञान, प्रेरक कहानियां और नैतिक शिक्षा संबंधी पुस्तकें दी जाती हैं। इस वर्ष, 600 से अधिक विविध पुस्तकें गाँवों को प्रदान की गई हैं, जिससे 200 से अधिक बच्चे लाभान्वित हुए हैं। घोड़ा लाइब्रेरी गर्मियों की छुट्टियों से शुरू हुई और बारिश के मौसम में भी जारी है। यह पहल उत्तराखंड के सुदूर गांवों में बच्चों तक शिक्षा पहुंचा रही है, जहां अत्यधिक बारिश के कारण स्कूल बंद हैं।
Man Ki Baat program
संस्था के प्रोजेक्ट एसोसिएट शुभम बधानी कहते हैं, “जिन गांवों में हम काम करते हैं, वे पहाड़ों में स्थित हैं। सड़कें ख़राब हैं और पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है. दिन में मात्र 8-10 घंटे ही बिजली मिलती है. इसलिए, इन गांवों में ‘शहर जैसा’ शैक्षिक माहौल प्रदान करना बहुत मुश्किल है। इन बाधाओं को ध्यान में रखते हुए, हम नैनीताल के कोटाबाग ब्लॉक के कई गांवों में एक मोबाइल लाइब्रेरी की अवधारणा लेकर आए। हमने इन गांवों से शैक्षिक प्रेरकों की भर्ती की और उन्हें अपेक्षित प्रशिक्षण प्रदान किया। धीरे-धीरे वे अपनी साइकिलों और साईकिलों पर गाँव-गाँव किताबें ले जाने लगे। लेकिन 10 जून से भारी बारिश के कारण इन गांवों से संपर्क अचानक समाप्त हो गया। गाँवों में शिक्षा की प्रक्रिया जारी रखने के लिए गाँव वालों ने हमें घोड़े उपलब्ध कराये। शिक्षा प्रेरक इन घोड़ों पर किताबें लेकर गाँवों का दौरा करने लगे।”
वर्तमान में संस्था के पास 10 घोड़े और 20 शिक्षा प्रेरक हैं। शुभम कहते हैं कि 25 फीसदी गांव, जहां वे काम कर रहे हैं, बारिश के कारण अभी भी संपर्क से कटे हुए हैं। ऐसे गांवों तक पहुंचने के लिए घोड़ों और शिक्षा प्रेरकों की संख्या बढ़ाने की योजना है।